India VIX ने समझाया: India VIX क्या है और यह कैसे काम करता है?

शेयर बाजार को अस्थिर माना जाता है, जिसमें उच्च स्तर की अस्थिरता होती है, जिसका अर्थ है कि छोटी अवधि में शेयरों की कीमतों में भारी ऊपर और नीचे की गति हो सकती है। बाजार के निवेशकों को डर सूचकांक या अस्थिरता सूचकांक जैसे शब्दों का सामना करना पड़ सकता है। भारत VIX या भारत अस्थिरता सूचकांक के बारे में जानना महत्वपूर्ण है, जो भारत में निवेशकों और व्यापारियों को अस्थिरता-प्रेरित उतार-चढ़ाव को समझने में मदद करता है। इस लेख में, हम VIX इंडिया और इसके महत्व के बारे में चर्चा करेंगे जो आपको सूचित निवेश निर्णय लेने में मदद कर सकता है।

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पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक: 180 देशों में सबसे नीचे भारत, सरकार ने कहा- पैमाना ‘पक्षपाती’

अमेरिकी संस्थानों द्वारा जारी सूचकांक रिपोर्ट कहती है कि तेज़ी से ख़तरनाक होती वायु गुणवत्ता और बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ भारत पहली बार रैंकिंग में सबसे निचले पायदान पर है. भारत की स्थिति म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बदतर है. भारत सरकार ने रिपोर्ट का खंडन करते हुए आकलन के पैमाने और तरीकों पर सवाल उठाए हैं. The post पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक: 180 देशों में सबसे नीचे भारत, सरकार ने कहा- पैमाना ‘पक्षपाती’ appeared first on The Wire - Hindi.

अमेरिकी संस्थानों द्वारा जारी सूचकांक रिपोर्ट कहती है कि तेज़ी से ख़तरनाक होती वायु गुणवत्ता और बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ भारत पहली बार रैंकिंग में सबसे निचले पायदान पर है. भारत की स्थिति म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बदतर है. भारत सरकार ने रिपोर्ट का खंडन करते हुए आकलन के पैमाने और तरीकों पर सवाल उठाए हैं.

A man cleans garbage along the banks of the river Ganges in Kolkata, India, April 9, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui

कोलकाता में गंगा नदी का किनारा. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: पर्यावरणीय प्रदर्शन के मामले में अमेरिका स्थित संस्थानों के एक सूचकांक में भारत 180 देशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर है. हालांकि, भारत सरकार ने इस सूचकांक को पक्षपाती बताकर खारिज कर दिया है.

‘येल सेंटर फॉर एनवायर्मेंटल लॉ एंड पॉलिसी’ और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क’ द्वारा हाल में प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) में डेनमार्क नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है सबसे ऊपर है. इसके बाद ब्रिटेन और फिनलैंड को स्थान मिला है. इन देशों को हालिया वर्षों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए सर्वाधिक अंक मिले.

ईपीआई दुनिया भर में स्थिरता की स्थिति का डेटा-आधारित सार मुहैया कराता है.

ईपीआई 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन संकेतकों का उपयोग करके 180 देशों को जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति के आधार पर अंक देता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सबसे कम अंक भारत (18.9), म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) को मिले हैं. कम अंक पाने वाले अधिकतर वे देश हैं, जिन्होंने स्थिरता पर आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी या जो अशांति और अन्य संकटों से जूझ रहे हैं.’

इसमें कहा गया, ‘तेजी से खतरनाक होती वायु गुणवत्ता और तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ भारत पहली बार रैंकिंग में सबसे निचले पायदान पर आ गया है.’

चीन को 28.4 अंकों के साथ 161वां स्थान मिला है. अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि उत्सर्जन वृद्धि दर पर अंकुश लगाने के हालिया वादे के बावजूद, चीन और भारत के 2050 में ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े और दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक देश बनने का अनुमान है.

अमेरिका को पश्चिम के 22 धनी लोकतांत्रिक देशों में 20वां और समग्र सूची में 43वां स्थान मिला है. ईपीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि अपेक्षाकृत कम रैंकिंग अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान पर्यावरण संरक्षण के कदमों से पीछे हटने के कारण है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि डेनमार्क और ब्रिटेन सहित फिलहाल केवल कुछ मुट्ठी भर देश ही 2050 तक ग्रीनहाउस गैस कटौती स्तर तक पहुंचने के लिए तैयार हैं.

इसमें कहा गया है, ‘चीन, भारत और रूस जैसे प्रमुख देशों में तेजी से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ रहा है और कई अन्य देश गलत दिशा में बढ़ रहे हैं.’

रूस इस सूची में 112वें स्थान पर है.

ईपीआई अनुमानों से संकेत मिलता है कि अगर मौजूदा रुझान बरकरार रहा, तो 2050 में 50 प्रतिशत से अधिक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए सिर्फ चार देश – चीन, भारत, अमेरिका और रूस – जिम्मेदार होंगे.

सरकार ने खंडन किया

भारत की इस पर्यावरणीय स्थिति के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बुधवार को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक- 2022 को खारिज कर दिया. मंत्रालय ने कहा कि सूचकांक में उपयोग किए गए सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं.

मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) 2022 में कई सूचक निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं. प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किए गए कुछ सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बुधवार को इन द्विवार्षिक सूचकांक के निष्कर्षों पर एक खंडन जारी किया. जिसमें कहा गया कि ईपीआई 2022 द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई संकेतक निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं.

मंत्रालय ने कहा है कि वह विश्लेषण और निष्कर्षों को स्वीकार नहीं करता है और प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किए गए इन संकेतकों में से कुछ अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं.

बिंदु दर बिंदु विस्तृत खंडन में मंत्रालय ने कहा कि 2022 के ईपीआई में एक नया संकेतक शामिल किया है, 2050 में अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर. इसमें भारत 180 देशों में 171वें पायदान पर है. इसकी गणना पिछले दस सालों में उत्सर्जन में परिवर्तन की औसत दर के आधार पर की जाती है और इसमें नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता व उपयोग की सीमा, अतिरिक्त कार्बन सिंक, ऊर्जा नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है दक्षता की गणना नहीं हुई है. वन और आर्द्रभूमि, महत्वपूर्ण कार्बन सिंक को भी इन उत्सर्जनों की गणना में शामिल नहीं किया है.

मंत्रालय ने यह भी कहा कि जिन संकेतकों पर भारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, उनका महत्व कम कर दिया, और बदलाव के कारणों की व्याख्या नहीं की गई. इसने भारत की रैंक गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भारत 2020 के ईपीआई में 168वें पायदान पर था.

मंत्रालय ने कहा, ‘विभिन्न संकेतकों का महत्व तय करने के लिए कोई विशिष्ट तर्क नहीं अपनाया गया है. ऐसा लगता है कि यह प्रकाशन संस्था की पसंद पर आधारित हैं, जो वैश्विक सूचकांक के लिए उपयुक्त नहीं है.’

बयान में आगे कहा गया है कि कोई भी संकेतक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता आदि पर बात नहीं करता है. संकेतकों का चयन पक्षपाती और अपूर्ण है.

जीडीपी क्या है?

सकल घरेलू उत्पाद, जिसे जीडीपी के रूप में संक्षिप्त किया गया है, किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है। जीडीपी को विशिष्ट समय सीमा पर मापा जाता है, जैसे कि एक चौथाई या एक वर्ष। जीडीपी एक आर्थिक संकेतक के रूप में दुनिया भर में देश के आर्थिक स्वास्थ्य को दिखाने के लिए उपयोग किया जाता है। निम्न-आय या मध्यम-आय वाले देशों के लिए, जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए उच्च-वर्ष-दर-वर्ष जीडीपी विकास आवश्यक है। इसलिए, भारत की जीडीपी वृद्धि दर देश के आर्थिक विकास और प्रगति का एक आवश्यक संकेतक है। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को मापने और सरकार को नीतियों को तैयार करने में मदद करने के अलावा, जीडीपी विकास दर संख्या भी निवेश से संबंधित बेहतर निर्णय लेने में निवेशकों के लिए उपयोगी है। जीडीपी की गणना करने के लिए विभिन्न देशों के अलग-अलग तरीके हैं। आइए भारत में जीडीपी विकास दर की गणना पर एक नज़र डालें।

जीडीपी की गणना कैसे की जाती है?

केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय, या सीएसओ, जीडीपी की गणना के लिए डेटा संकलन के लिए जिम्मेदार है। यह कई संघीय और राज्य द्वारा संचालित एजेंसियों के साथ समन्वय करके सकल घरेलू उत्पाद का डेटा एकत्र करता है। डेटा संग्रह प्रक्रिया पूरी होने के बाद, जीडीपी की गणना करने का कार्य शुरू होता है। जीडीपी नंबर पर आने के दो तरीके हैं:

पहला तरीका कारक लागत पर जीडीपी के रूप में जाना जाता है और आर्थिक गतिविधियों पर आधारित है।

दूसरी विधि व्यय-आधारित पद्धति (बाजार मूल्यों पर) है।

इसके अलावा, नाममात्र जीडीपी की गणना वर्तमान बाजार मूल्य का उपयोग करके की जाती है, और मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद वास्तविक जीडीपी का आगमन होता है।

जीडीपी संख्या के चार सेटों में, कारक लागत पर जीडीपी सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला आंकड़ा है और मीडिया में रिपोर्ट किया गया है। जबकि कारक लागत पर जीडीपी से पता चलता है कि कौन सा उद्योग क्षेत्र अच्छा कर रहा है, व्यय आधारित जीडीपी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति का संकेत है; व्यापार कैसे हो रहा है या निवेश गिरावट पर है या नहीं।

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) क्या है?

सकल घरेलू उत्पाद का अर्थ: सकल घरेलू उत्पाद, जिसे जीडीपी के रूप में संक्षिप्त किया जाता है, किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है।

अर्थशास्त्र में जीडीपी: जीडीपी को विशिष्ट समय सीमा पर मापा जाता है, जैसे कि एक चौथाई या एक वर्ष। जीडीपी एक आर्थिक संकेतक के रूप में दुनिया भर में देश के आर्थिक स्वास्थ्य को दिखाने के लिए उपयोग किया जाता है।

जीडीपी डेटा कहां से सोर्स किया जाता है?

कारक लागत पर जीडीपी की गणना के लिए, डेटा आठ क्षेत्रों से लिया गया है, अर्थात् कृषि; खनन एवं उत्खनन; विनिर्माण; वानिकी और मछली पकड़ने; बिजली और गैस की आपूर्ति; निर्माण, व्यापार, होटल, परिवहन और संचार; वित्तपोषण, अचल संपत्ति और बीमा; और व्यावसायिक सेवाएँ और समुदाय, सामाजिक और सार्वजनिक सेवाएँ। व्यय-आधारित जीडीपी की गणना के लिए, अंतिम वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए सभी खर्चों को जोड़ा जाता है जिसमें उपभोक्ता खर्च, सरकारी खर्च, व्यापार निवेश खर्च और शुद्ध निर्यात शामिल हैं। सरकार हर दो महीने में तिमाही जीडीपी संख्या जारी करती है, और पूरे वर्ष के लिए अंतिम संख्या 31 मई को जारी की जाती है।

भारत जीडीपी की गणना कैसे करता है?

भारत की उत्पादकता का आकलन करने के लिए, जीडीपी की गणना आठ उद्योगों में कारक लागत पद्धति का उपयोग करके की जाती है और व्यय पद्धति का उपयोग यह विश्लेषण करने के लिए किया जाता है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र कैसे प्रदर्शन कर रहे हैं।

व्यय विधि के चार भाग हैं। निजी खपत में कार खरीदना या बाहर खाना जैसी चीजें शामिल हैं। केवल अंतिम खपत को ध्यान में रखा जाता है।

एक मौजूदा घर, एक जहां मालिक तकनीकी रूप से खुद को किराया दे रहा है, निजी उपभोग की ओर गिना जाएगा। हालांकि, एक नया घर खरीदना एक निवेश के रूप में सूत्र के दूसरे भाग की ओर गिना जाएगा।

ऐसा इसलिए है क्योंकि एक नए घर को एक अच्छे के रूप में देखा जाएगा जिसका उपयोग भविष्य के उत्पादन में किया जाएगा। वही अन्य इमारतों, भारी मशीनरी और बचे हुए स्क्रैप के लिए जाता है।

व्यय पद्धति का तीसरा पहलू सरकारी खरीद है। इसमें कर्मचारियों को वेतन, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) भुगतान, पेंशन, सब्सिडी और अन्य तरीके शामिल हैं जो सरकार जनता के लिए अच्छा पैसा खर्च करती है।

हालांकि, एक देश के भीतर सभी सामान घर का नहीं है। कुछ अन्य देशों से खरीदे जाते हैं। इसलिए विदेशी खर्च की गणना करते समय – आयात के मूल्य को निर्यात के मूल्य से घटाया जाना चाहिए। व्यय विधि, निजी खपत के पहले भाग के भीतर आयात का पहले से ही हिसाब है।

जीडीपी की गणना करने का कारक लागत विधि क्या है?

भारत की अर्थव्यवस्था का जीवीए आंकड़ा निर्दिष्ट समय अवधि में प्रत्येक क्षेत्र के लिए मूल्य में शुद्ध परिवर्तन की गणना करके आता है।

भारत ने जिन आठ उद्योग क्षेत्रों को संभाला है वे हैं:

कृषि, वानिकी और मछली पकड़ना

बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति

व्यापार, होटल, परिवहन और संचार

फाइनेंसिंग, इंश्योरेंस, रियल एस्टेट और बिजनेस सर्विसेज

सामुदायिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएंदो तरीकों से जीडीपी संख्या एक सटीक मेल नहीं हो सकती है लेकिन विसंगति का स्तर न्यूनतम होना चाहिए।

2022 वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक रिपोर्ट जारी

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2022 वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक (Global Food Security Index – GFSI) रिपोर्ट ब्रिटिश साप्ताहिक ‘द इकोनॉमिस्ट’ द्वारा जारी की गई। 11वां वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक तीसरे वर्ष के लिए वैश्विक खाद्य पर्यावरण में गिरावट दर्शाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा है। इस रिपोर्ट में, दक्षिण अफ्रीका ने अफ्रीका में सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश बनने के लिए ट्यूनीशिया को पीछे छोड़ दिया है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

झटकों के प्रति भेद्यता (Vulnerability to Shocks): वैश्विक खाद्य पर्यावरण बिगड़ रहा है, जिससे यह झटकों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 2012 से 2015 तक वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जिसमें समग्र GFSI स्कोर में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालाँकि, संरचनात्मक चुनौतियों के कारण वैश्विक खाद्य प्रणाली का विकास धीमा हो गया है।

सामर्थ्य (Affordability): 2022 में, GFSI को अपने दो सबसे मजबूत स्तंभों – सामर्थ्य, और गुणवत्ता और सुरक्षा के गिरने के कारण नुकसान उठाना पड़ा। अन्य दो स्तंभों (उपलब्धता, और स्थिरता और अनुकूलन) में कमजोरी इस वर्ष के दौरान जारी रही। मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि, व्यापार की स्वतंत्रता में कमी और खाद्य सुरक्षा के लिए धन कम होने के कारण सामर्थ्य (शीर्ष-स्कोरिंग स्तंभ) नीचे चला गया।

खाद्य सुरक्षा अंतर को बढ़ाना: 2022 में, शीर्ष 10 प्रदर्शन करने वाले देशों में से 8 यूरोप में हैं, जिसमें फिनलैंड 83.7 के स्कोर के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद आयरलैंड (81.7 स्कोरिंग) और नॉर्वे (80.5 स्कोरिंग) का स्थान है। इन देशों को GFSI के सभी 4 स्तंभों पर उच्च अंक प्राप्त हुए हैं। शीर्ष 10 सूची में गैर-यूरोपीय देश जापान और कनाडा हैं।

अफ्रीका का सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश: दक्षिण अफ्रीका, 59वें स्थान पर, अफ्रीका में सबसे अधिक खाद्य-सुरक्षित देश के रूप में पहचाना गया।

मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) क्या होता है?

मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) क्या होता है?

आज के neelgyansagar.in ब्लॉग के लेख में आपको मानव विकास सूचकांक(HDI) के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दे रहा हूं उम्मीद है आप लोगों को यह जानकारी पढ़कर मानव विकास सूचकांक(Human Development Index) के बारे में पूरा ज्ञान हो जाएगा।

क्या है मानव विकास सूचकांक?What is Human Develpment Index?

मानव विकास सूचकांक यानी ह्यूमन डेवेलोपमेंट इंडेक्स (एचडीआई) जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आय(Income) सूचकांकों का एक संयुक्त सांख्यिकी सूचकांक है। मानव विकास सूचकांक के जन्मदाता पाकिस्तान के अर्थशास्त्री श्री महबूब उल हक को माना जाता है। पहला मानव विकास सूचकांक 1990 में जारी किया गया था। तब से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(United Nations Development Program) द्वारा इसे प्रकाशित किया जाता है। जिसमें दुनिया के उन सभी देशों को विकास प्रगति सारणी में श्रेणीबद्ध किया जाता है जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। जो मानव विकास सूचकांको की प्रगति की सूचना उपलब्ध करवाते हैं।

UNDP द्वारा 15 दिसंबर 2020 को एचडीआई रिपोर्ट 2020 जारी की गई है। इसका शीर्षक है -"The next frontier:Human Development and the Anthropocene".

मानव विकास सूचकांक(HDI)का निर्धारण किस आधार पर होता है?

स्वास्थ्य, शिक्षा और आय को आधार बनाकर तीन बुनियादी आयामों में मानव विकास की उपलब्धियों का एक राष्ट्रीय औसत दर्शाता है। एचडीआई उपरोक्त तीनों सूचकांकों के योग को तीन से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है।

संपूर्ण देशों को 4 मानव विकास श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है- बहुत अधिक, उच्च, मध्यम तथा निम्न देश। भारत मध्यम श्रेणी के मानव विकास में आता है।

  • जीवन स्तर: इसकी गणना प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय से की जाती है अर्थात एक व्यक्ति की कुल आय प्रतिवर्ष कितनी है।
  • नया उच्च नया निम्न संकेतक क्या है
  • स्वास्थ्य: इसकी गणना जन्म के समय जीवन प्रत्याशा से की जाती है।
  • शिक्षा: इसकी गणना वयस्क आबादी के बीच विद्यालय शिक्षा के औसत वर्षो और बच्चों के लिए विद्यालय शिक्षा के अपेक्षित वर्षों के माध्यम से की जाती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के संपूर्ण देशों का मानव विकास वर्गीकरण:

  1. बहुत अधिक- 1 से 62 देश।
  2. उच्च- 63 से 116 पायदान वाले देश।
  3. मध्यम- 117 से 153 पायदान वाले देश।
  4. निम्न- 154 से 189 पाए जाने वाले देश।

मानव विकास सूचको के आधार पर शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, सकल प्रजनन दर, साक्षरता दर, शाला नामांकन दर, विवाह के समय औसत आयु, स्कूल शिक्षा प्राप्ति दर, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, सकल राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय, जीवन की मूलभूत सुविधाओं का स्तर आदि में प्रगति के स्तर को देखते हुए श्रेणीबद्ध किया जाता है।

मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट को प्रकाशित कौन करता है?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में दुनिया के विकास मुद्दों, प्रवृत्तियों और नीतियों पर चर्चा शामिल होती है। इसके अलावा यह रिपोर्ट मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को वार्षिक रैंकिंग भी प्रदान करती है। मानव विकास रिपोर्ट में चार अन्य सूचकांक भी शामिल होते हैं। जो निम्न प्रकार है:-

  1. असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक:-यह देश में स्थित असमानता के आधार पर मानव विकास सूचकांक की गणना करता है।
  2. लैंगिक विकास सूचकांक:-यह महिला और पुरुष मानव विकास सूचकांको की तुलना करता है।
  3. लैंगिक असमानता सूचकांक:- यह प्रजनन, स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और श्रम बाजार के आधार पर लैंगिक असमानता का एक समग्र आकलन प्रस्तुत करता है।
  4. बहुआयामी या निर्धनता सूचकांक:- यह गरीबी के गैर-आय आयामों का आकलन करता है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मुताबिक 2020 में मानव विकास सूचकांक में भारत ने 1 स्थान की छलांग लगाई है और 189 देशों के बीच इसकी रैंकिंग 131 हो गई है। यूएनडीपी की भारत में स्थानीय प्रतिनिधि शोडो नोडा के अनुसार भारत में 2005-2006 से 2015-2016 के बीच 27.1 करोड लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है अभी भी हालांकि भारत की स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में भारत की रैंकिंग 129 व वर्ष 2019 में 130 थी। तीन दशकों से तेज विकास के कारण यह प्रगति हुई है। जिसके कारण गरीबी में कमी आई है,साथ ही जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में बढ़ोतरी के कारण रैंकिंग में भारत का सुधार हुआ है।

रैंकिंग में नॉर्वे, स्विजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया,आयरलैंड और जर्मनी टॉप पर है। जबकि नाइजर, दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य,दक्षिणी सूडान,चाड और बुसंडी काफी कम एचडीआई वैल्यू के साथ फिसड्डी देशों में शुमार है। भारत का एसडीआई वैल्यू 0.645 दक्षिणी एशिया के औसत 0.638 से थोड़ा ऊपर है। वर्ष 1990 में भारत का एचडीआई वैल्यू 0.431 था। वहीं वर्ष 2020 में बढ़कर 0.645 हो गया है। भारत 1.3% औसत वार्षिक एचडीआई वृद्धि के साथ सबसे तेजी से सुधार करने वाले देशों में शामिल है। मानव विकास की गति को बनाए रखने के लिए तथा इसको और अधिक तेज करने के लिए सामाजिक सेवा में सार्वजनिक क्षेत्र जैसे- शिक्षा और स्वास्थ्य की भूमिका बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है।

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Neelkamal

प्रस्तुतकर्ता Neelkamal

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