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लिक्विडिटी क्या है

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क्या है ‘लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो’?

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लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो ’ ( एलसीआर) को हिन्दी में नकदी कवरेज अनुपात कह सकते हैं। एलसीआर मानकों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब भी कोई संकट आए तो बैंक के पास पर्याप्त मात्र में एचक्यूएलए यानी ‘ हाई क्वालिटी लिक्विडिटी असेट्स ’ हों ताकि उसे नकदी में तब्दील कर कम से कम 30 दिनों तक की जरूरत को पूरा किया जा सके। संकट के समय जिन परिसंपत्तियों को आसानी से बेचकर या गिरवी रखकर नकदी जुटाई जा सके , उन्हें ‘ हाई क्वालिटी लिक्विडिटी असेट्स ’ कहते हैं। उदाहरण के लिए सीआरआर के अतिरिक्त उपलब्ध नकदी और एसएलआर की सीमा से अतिरिक्त सरकारी सिक्योरिटी को एचक्यूएलए की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके अलावा एक निश्चित श्रेणी के कॉरपोरेट बांड्स और कुछ अन्य परिसंपत्तियां भी एचक्यूएलए की श्रेणी में आती हैं। असल में एचक्यूएलए को भुनाते समय उनके मूल्य में कमी नहीं आती। वे वैधानिक व नियामक बाध्यताओं और व्यवहारिक बाधाओं से रहित होती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उन्हें भुनाने में किसी भी तरह से कोई दिक्कत नहीं आती।दरअसल एलसीआर का विचार पिछले दशक में आया। वर्ष 2007 के वैश्विक वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में बासेल कमिटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन (बीसीबीएस) ने बैंकिंग सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए पूंजी व नकदी (लिक्विडटी) नियमों में निश्चित सुधारों का प्रस्ताव रखा था। इसके तहत दिसंबर , 2010 में नकदी पर बासेल- 3 नियम जारी किए गए। इसमें दो न्यूनतम मानक रखे गए थे। पहला था - लिक्विडटी कवरेज रेश्यो (एलसीआर) और दूसरा , नेट स्टेबल फंडिंग रेश्यो ताकि बैंकों को कभी नकदी संकट का सामना न करना पड़े। इसके बाद बीसीबीएस ने 2013 में एलसीआर से संबंधित नियमों में बदलाव भी किया। आरबीआइ ने जनवरी , 2015 से चरणबद्ध ढंग से बैंकों के लिए एलसीआर संबंधी नियम लागू किए। 2015 में बैंकों को न्यूनतम 60 फीसद और इस वर्ष की शुरुआत से बढ़ाकर 100 फीसद एलसीआर रखने का नियम लिक्विडिटी क्या है बनाया गया। इसका मतलब यह हुआ कि इस साल बैंकों को एचक्यूएलए के रूप में उतनी नकदी का इंतजाम रखना होगा जितनी उसे 30 दिन में खर्च करने के लिये जरूरत पड़ती है। संकट के समय बैंक अपने एचक्यूएलए का इस्तेमाल कर सकते हैं और ऐसा होने पर यह 100 फीसद से नीचे भी आ सकता है। लेकिन कोई बैंक यदि एचक्यूएलए का उपयोग करता है तो फौरन इसकी जानकारी आरबीआइ को देनी होगी। बैंक को यह बताना होगा कि उसने किन परिस्थितियों में इसका इस्तेमाल किया और अब हालात सुधारने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं।आरबीआइ ने 24 मार्च को एनबीएफसी के लिये एलसीआर लागू लिक्विडिटी क्या है करने को एक ड्राफ्ट सकरुलर जारी किया है। एनबीएफसी को अगले वर्ष अप्रैल से लेकर 2024 तक चरणबद्ध ढंग एलसीआर के नियमों का पूरी तरह पालन करना है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक परिसंपत्ति वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए ‘ लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो ’ का नियम लागू करने का प्रस्ताव किया है। एलसीआर क्या है ? बैंकों और एनबीएफसी के लिए इसका क्या मतलब है ?

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बैंक एफडी या लिक्वि‍डिटी फंड? सुरक्ष‍ित न‍िवेश के ल‍िए बेहतर व‍िकल्‍प कौन, जान‍िए

आरबीआई मई से अभी तक रेपो रेट में 190 बेसिस प्‍वाइंट की बढ़ोतरी कर चुका है और अभी रिजर्व बैंक का रेपो रेट 5.9 प्रतिशत है।

बैंक एफडी या लिक्वि‍डिटी फंड? सुरक्ष‍ित न‍िवेश के ल‍िए बेहतर व‍िकल्‍प कौन, जान‍िए

जानिए आपके लिए निवेशे के कौन से हैं बेहतर विकल्‍प (फोटो-Freepik)

रिजर्व बैंक की ओर से रेपो रेट में 50 बेसिस प्‍वाइंट की बढ़ोतरी के बाद कई बैंकों की ओर से एफडी पर ब्‍याज दर में बढ़ोतरी कर दी है। आरबीआई मई से अभी तक 190 बेसिस प्‍वाइंट की बढ़ोतरी कर चुका है और अभी रिजर्व बैंक का रेपो रेट 5.9 प्रतिशत है। वहीं अभी हाल ही में एसबीआई बैंक, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक ने टर्म डिपॉजिट लिक्विडिटी क्या है पर 2 करोड़ से कम जमा पर ब्‍याज में बढ़ोतरी की है।

इन बैंकों के ब्‍याज में बढ़ोतरी के कारण एफडी के इंटरेस्‍ट रेट हाई हो चुके हैं। ऐसे में निवेशकों के लिए निवेश का एक बेहतर विकल्‍प हो चुका है। कई एक्सपर्ट के अनुसार, मुद्रास्फिति को मात देने के लिए एफडी पर वर्तमान ब्‍याज अच्‍छा है। हालांकि कई एक्‍सपर्ट का मानान है कि निवेशकों को लिक्विड फंड में निवेश करना चाहिए। आइए जानते हैं आपके लिए कौन सा स्‍कीम बेहतर हो सकता है।

लिक्विडी फंड क्‍या है?

लिक्विड फंड 91 दिनों या 3 महीने तक की मैच्‍योरिटी वाली फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज जैसे कि ट्रेजरी बिल, कमर्शियल पेपर, सरकारी सिक्योरिटीज, बॉन्ड और डिबेंचर में निवेश किया जा सकता है। एक्‍सपर्ट मनोज डालमिया ने कहा कि लिक्विड फंड में कोई भी व्यक्ति जब चाहे तब रिडीम कर सकता है, क्योंकि इसमें कोई लॉक इन पीरियड नहीं है। लिक्विड फंड शॉर्ट और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स दोनों विकल्‍प के साथ आता है और इसमें इंडेक्सेशन लाभ भी हैं।

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फिक्‍स डिपॉजिट (FD) क्या हैं?

फिक्‍स डिपॉजिट में कोई 7 दिनों से लेकर 10 साल तक निवेश कर सकता है, लेकिन रिटर्न केवल लंबी अवधि में अधिक होता है और कम समय में बचत खातों में समान रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है। मनोज डालमिया के अनुसार, बैंक सावधि जमा में लॉक इन पीरियड होता है और जल्दी निकासी करना केवल दंड के साथ ही संभव है। यह ब्याज आय को कम करता है।

लिक्विड फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट के बीच अंतर

मनोज डालमिया के मुताबिक, लिक्विड फंड और बैंक एफडी दोनों का इस्तेमाल शॉर्ट टर्म सरप्लस को कम करने और कम जोखिम के साथ मध्यम रिटर्न गेन करने के लिए किया जा सकता है। वहीं आप लिक्विड फंड में कभी भी पैसे की निकासी कर सकते हैं।

इकोनॉमिक्स शब्दावली: क्या है विदेशी विनिमय मुद्रा बाजार, विशेष आर्थिक क्षेत्र, विनिवेश और वैधानिक तरलता अनुपात?

विदेशी विनिमय मुद्रा बाजार (Foreign Exchange Market): ऐसा बाजार जहाँ आज की नियत दरों पर मुद्राओं की खरीद बिक्री होती है - पर उस खरीदी-बेची गई मात्रा का वास्तविक हस्तांतरण भविष्य की किसी नियत तिथि को ही किया जाता है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones): ऐसे भौगोलिक क्षेत्रा जिनमें विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के ध्येय से देश के सामान्य आर्थिक कानूनों को पूर्णतः लागू नहीं किया जाता। विशेष रूप से बनाए गए आर्थिक क्षेत्रों में स्थापित हो चुके हैं। ये देश हैं- जनवादी चीन, भारत, जार्डन, पोलैंड, कजाकिस्तान, पिफलीपीन्स रूस आदि।

विनिवेश (Disinvestment): किसी कंपनी की पूँजी के एक अंश को जान-बूझ कर बेचना। इस प्रकार धन जुटाने के साथ-साथ उस कंपनी की हिस्सेदारी, रचना या प्रबंधन या दोनों, में बदलाव भी किये जा सकते हैं।

वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio): रिजर्व बैंक के आदेशानुसार बैंकों द्वारा वुफल जमाओं और सुरक्षित निधियों का तरल रूप में रखा जाने वाला अंश। नकद जमा अनुपात के साथ-साथ इस वैधानिक तरलता अनुपात का अनुपालन करना बैकों के लिए अनिवार्य होता है।

बैंकिंग प्रणाली की लिक्विडिटी तीन वर्षों में पहली बार घाटे में

बैंकिंग प्रणाली की लिक्विडिटी तीन वर्षों में पहली बार घाटे में चली गई। इंडिया रेटिंग्स द्वारा संकलित भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, 20 सितंबर, 2022 को नेट लिक्विडिटी इंजेक्शन 21,873.43 करोड़ रुपये था। इस तरह मई 2019 के बाद बैंकों के पास लिक्विडिटी (कैश) सरप्लस की स्थिति डेफिसिट में बदल गयी है।

आज से ठीक एक साल पहले (सितंबर 2021 में) बैंकिंग प्रणाली में शुद्ध अधिशेष तरलता (Net surplus liquidity) 8.03 लाख करोड़ रुपये थी।

लिक्विडिटी घाटे की कई वजहें हो सकती हैं

भारत की बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी घाटे की कई वजहें हो सकती हैं:

कोविड महामारी के बाद बैंकों से ऋण की मांग में लिक्विडिटी क्या है वृद्धि हुई है और बैंकों ने अधिक ऋण वितरित किये होंगे।

ऋण की मांग के अनुपात में बैंकों में जमा नहीं आ रहे होंगे। अर्थात बैंक कर्ज अधिक दे रहे हैं लेकिन बैंकों में पैसा उसी अनुपात में कम जमा हो रहा है।

कॉरपोरेट्स ने अग्रिम कर भुगतान (एडवांस टैक्स पेमेंट) भी अधिक किया है। यह भी एक वजह है।

इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक भी कदम उठा रहा है। बैंकों में लिक्विडिटी कम होने की यह भी एक वजह हो सकती है।

क्या होती है बैंकिंग लिक्विडिटी (बैंकिंग तरलता)?

बैंकिंग प्रणाली में तरलता से मतलब आसानी से उपलब्ध नकदी या कैश से है जिसे बैंकों को अल्पकालिक बिजनेस और वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।

किसी दिए गए दिन, यदि बैंकिंग प्रणाली तरलता समायोजन सुविधा ( Liquidity Adjustment Facility: LAF) के तहत RBI का एक शुद्ध उधारकर्ता (net borrower) है, तो कहा जाता है कि बैंकिंग सिस्टम तरलता घाटे (liquidity deficit) में है।

इसके विपरीत यदि बैंकिंग प्रणाली RBI के लिए एक शुद्ध ऋणदाता (net lender) है, तो सिस्टम तरलता सरप्लस कहा जा सकता है। LAF आरबीआई के उस ऑपरेशन्स को कहा जाता है जिसके माध्यम से यह बैंकिंग प्रणाली में नकदी डालता है या उससे नकदी निकालता है।

लिक्विडिटी घाटे के प्रभाव

बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की कमी के कई प्रभाव हो सकते हैं। इस स्थिति में सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड में वृद्धि हो सकती है और बाद में उपभोक्ताओं के लिए ब्याज दरों में भी वृद्धि हो सकती है।

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