सोढमहुआ गांव में 1 वर्ष से जल मिनार है खराब, नहीं मिल रहा है बरहिया जाति को शुद्ध पेयजल, BDO से मिले ग्रामीण।
नावा बाजार सोहदाग खुर्द पंचायत के कुंभी खुर्द गांव सोढ महुआ में लगाए गए जल मिनार लगभग एक वर्ष से खराब है । इस जलमिनार को ग्रामीणों ने शुद्ध पेयजल को लेकर काफी परेशान हैं । मंगलवार को दर्जनों ग्रामीणों ने नावा बाजार प्रखड विकास पदाधिकारी मोहम्मद अमीर हमजा से मुलाकात कर इस जलमिनार को ठीक कराने के लिए मांग किया है ।
मांग करने वाले में मिथिलेश सिंह, अकलू परहिया, सुदामा परहिया, रामचंद्र परहिया, अनीता देवी, भोला परहियाया समेत दर्जनों के नाम शामिल है ।
झांसी के उद्यमियों को बड़ा बाजार देने को (जीडा) को विकसित किया जाएगा
नोएडा की तर्ज पर झांसी में औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीडा) विकसित किया जाएगा। इसके लिए सदर तहसील में.
नोएडा की तर्ज पर झांसी में औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीडा) विकसित किया जाएगा। इसके लिए सदर तहसील में 10,450 हेक्टेअर जमीन चिह्नित कर ली गई है। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है, जिस पर जल्द मुहर लगने की संभावना जताई जा रही है।
बुंदेलखंड प्रदेश के औद्योगिक रूप से पिछड़े इलाकों में से एक माना जाता है। इससे यहां रोजगार का भी अभाव रहता है। इस कमी को दूर करने के लिए प्रदेश के छह जनपदों में बनने वाले डिफेंस कॉरिडोर में झांसी को शामिल किया गया है। अब यहां नोएडा (न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) की तर्ज पर झांसी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाने की कोशिशें भी शुरू कर दी गई हैं। इसके लिए सदर तहसील के 23 गांवों में 10,450 हेक्टेअर भूमि चिह्नित कर ली गई है। इस भूमि की सर्किल रेट के हिसाब से कीमत 20 अरब 90 करोड़ रुपये आंकी गई है। भू स्वामियों से लिए जाने पर जमीन की कीमत का उन्हें चार गुना 83 अरब 60 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाएगा।
स्थानीय प्रशासन द्वारा इसका प्रस्ताव अवस्थापना बाजार आंदोलन का प्रभाव एवं औद्योगिक विकास विभाग को भेजा गया है। इस पर जल्द मुहर लगने की संभावना जताई जा रही है। झांसी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीडा) डगरवाहा, वमेर, बाजना, राजापुर, बछौनी, परासई, इमिलिया, अमरपुर, गागौनी, बदनपुर, बसाई, खैरा, बैदोरा, चमरौआ, खजराहा बुजुर्ग, खजराहा खुर्द, मुरारी, किल्चुवारा बुजुर्ग, मथुरापुरा, रक्सा, बरुआपुरा, सफा व ग्राम किल्चुवारा खुर्द गांवों में विकसित किया जाएगा। जीडा में उद्यमियों को जमीन लीज पर दी जाएगी। उन्हें जमीन की कीमत की महज 10 प्रतिशत राशि शुरुआत में अदा करनी होगी, बाकी रकम किस्तों में ली जाएगी। इसके अलावा एक लाभ यह भी है कि वह जमीन पर महज 10 फीसदी निवेश कर उसे बंधक बनाकर बैंक से ऋण भी ले सकेंगे।
इन्हें यह लाभ मिलेंगे जैसे 33 विभागों के अनापत्ति, अनुमोदन व लाइसेंस जैसे काम एक ही स्थान से प्राधिकरण के माध्यम से होंगे। सुव्यवस्थित औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाएगा, जिसमें उद्योगों की मांग से जुड़े सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। आवासीय परिसर भी बनाए जाएंगे। बेयर हाउस, लॉजिस्टिक इंडस्ट्री, इनलैंड कंटेनर डिपो आदि भी रहेंगे।
बताते चलें झांसी को बुंदेलखंड का आर्थिक और औद्योगिक हब बनाने के लिए झांसी विकास प्राधिकरण लगातार काम कर रहा है। इसके लिए जेडीए द्वारा सिटी डेवलपमेंट का मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। जिसके तहत झांसी और उसके आसपास के इलाकों में चल रहे उद्योगों को बड़े बाजार से जोड़ने के लिए विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही स्थानीय उद्यमियों और कृषि आधारित व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए उनके कारोबार को विस्तार देने के मकसद से ट्रांसपोर्ट और वेतन व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए सहूलियतों का विस्तार किया जाएगा।
झांसी के लिए इस विजन प्लान को तैयार करने की जिम्मेदारी झांसी विकास प्राधिकरण को दी गयी है। इस प्लान में झांसी की आर्थिक गतिविधि केंद्र पर फोकस किया जाएगा। विजन प्लान को बेहतर बनाने के लिए स्थानीय उद्यमियों से उनकी राय ली जा रही है। इसके साथ ही झांसी के आसपास के जिलों में जो कारोबार संचालित हैं। उनसे संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भी झांसी को केंद्र बनाए जाने की योजना है। इस कदम से उद्यमियों को एक बड़ा बाजार मिल सकेगा।
किसान फिर आंदोलन की राह पर
सत्ता, पूंजी और पूंजीपति आधारित मनचाहे विकास के वाइब्रेंट इंडिया में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। शाइनिंग-इंडिया को आईना दिखाती गांवों की 70 फीसद आबादी वाली, गरीब भारत की खेती- किसानी इसकी हकीकत बयां कर रही है। चकाचौंध की इवेंट-पॉलिटिक्स से लबरेज शिवराज सरकार का खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे का घिसा-पिटा हवाई सूत्र-वाक्य हो या मोदी सरकार का किसानों की आय को दोगुना करेंगे का जादूगरी नारा, इसके सामने सबके सब औंधे मुंह पड़े हैं। यह न विरोधी दलों के आरोप हैं न ही वाम विचार। यह दास्तान किसानों का वह भारतीय किसान संघ (भाकिसं) सुना रहा है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) का सहयोगी संगठन है। अपनी बात कहने के लिए देशभर के दूरस्थ गांवों के लाखों किसान अपने सारे काम छोड़कर कड़कड़ाती ठंड में यात्रा की तकलीफ उठाते हुए दिल्ली कूच कर रहे हैं। इसके लिए किसानों को अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करना पड़ रही है। उनमें गुस्सा इतना है कि सरकार और संसद को जगाने राष्ट्रव्यापी आंदोलन तक करने तैयार हैं। किसान 19 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान पर पहुंचे थे, जहां संसद का बजट सत्र चल रहा था। किसानों की आवाज से सरकार और संसद की नींद टूट जाए इस लिहाज से आंदोलन की योजना बनाई गई है।
दूसरी ओर, बीते वर्ष केंद्र के तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने वाला किसान आंदोलन किसानों की लंबित मांगें लेकर फिर से मोर्चा लेने के मूड में है। खेती के तीन कानून रद्द करने के साथ बाजार आंदोलन का प्रभाव ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कानून बनाने का वादा किया गया था। संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप है कि एमएसपी कानून के वादे पर सरकार ने धोखा दिया है। यही स्थिति रही तो पुन: आंदोलन होगा और दिल्ली सील होगी। स्पष्ट है कि देश भर में खेती-किसानी का संकट दिनों-दिन गहराता जा रहा है। आंदोलन के लिए एक के बाद एक संगठन कमर कस रहे हैं।
खबर यह भी है कि हरियाणा और उत्तरप्रदेश के गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया शक्कर मिलों द्वारा नहीं दिया गया है। करोड़ों रुपयों का भुगतान अब तक नहीं होने से हजारों किसान नाराज हैं और वे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सबसे ज्यादा बकाया उत्तरप्रदेश, हरियाणा में है। मध्यप्रदेश के धार, खरगोन की शक्कर मिलों में भी गन्ने के भाव कम देने और बकाया भुगतान नहीं करने से किसानों में गुस्सा है। रेवा शुगर मिल में किसानों ने बीते दिनों बकाया पैसा नहीं मिलने पर प्रदर्शन किया था। इस सबसे जगह-जगह सरकार के खिलाफ किसानों में आक्रोश है।
भाकिसं जैसे आरएसएस के अनुषांगिक संगठन भाजपा की सरकारों से लडने को विवश हैं। बीते महीनों में भाकिसं अपनी मांगों को लेकर राज्य और जिला स्तर पर लगातार धरने-प्रदर्शन कर सरकार को जगाने के लिए गर्जना कर चुका है। दिल्ली में किसान खेती की उपज का लाभकारी मूल्य देने, भू-अधिग्रहण, जंगल के जानवरों से फसलों के नुकसान, सम्मान-निधि, कृषि-उत्पादों से जीएसटी हटाने जैसी महत्वपूर्ण मांगों को लेकर पहुंचे हैं।
इसकी एक ही वजह दिखाई देती है – सरकारों की नजर में किसान और खेती दोयम दर्जे की है, जबकि कोरोना से तबाह अर्थव्यवस्था को बचाने और घरों में दुबकी, भूखी जनता का पेट किसानों ने ही भरा है। किसानों और उनके खेत-खलिहानों ने ही सरकारों के खजाने को भी खाली नहीं होने दिया। भाकिसं किसानों को एमएसपी की बजाए लाभकारी मूल्य दिलाने की मांग पर अडिग है।
मोदी सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के सवाल पर महेश चौधरी कहते हैं कि इसका फार्मूला भी उपज की लागत पर निर्भर है। सबसे पहले यह निर्धारण होना चाहिए कि किसानों का खेती में व्यय कितना हो रहा है। जब लागत का निर्धारण हो जाएगा, तब ही उपज बेचने के भाव पर लाभ का आंकलन होगा।
इस तरह लागत के आधार पर किसानों को लाभदायक मूल्य मिल सकता है। समग्र कृषि खर्च के लिहाज से एमएसपी किसान के लिए फायदेमंद नहीं है, जबकि लाभकारी मूल्य में किसान द्वारा लगाई गई पूंजीगत लागत पर ब्याज, मशीनरी के मूल्यह्रास, किसान के परिश्रम के अनुसार मेहनताना शामिल है। इस तरह फसल उत्पादन में होने वाले कुल खर्च की लागत पर 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर लाभकारी मूल्य की गणना की गई है।
भाकिसं इस मांग को लंबे समय से उठा रहा है। इंदौर महानगर किसान संघ के अध्यक्ष दिलीप मुकाती ने बताया कि हमारी यह भी मांग है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सुनियोजित ढंग से किए गए किसान विरोधी प्रावधानों को खत्म किया जाए। इसी तरह किसान को फसल उत्पादक होने के बावजूद जीएसटी का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता। इसलिए किसान गर्जना रैली में कृषि-आदानों पर से जीएसटी खत्म करने की मांग भी की गई है।
खरगोन-क्षेत्र के भाकिसं के जिला अध्यक्ष सदाशिव पाटीदार और श्याम सिंह पंवार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई व मुद्रा-स्फीति के अनुसार किसान सम्मान निधि की राशि में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए। विकास के नाम पर कृषि-भूमि के अधिग्रहण की मनमानी बंद होनी चाहिए और फसलों को नुकसान कर रहे जंगली जानवरों के नियंत्रण के लिए वन, पर्यावरण संगत नीति बनाने के साथ नुकसान का मुआवजा दिया जाना चाहिए या फिर खेतों की फेंसिंग के लिए अनुदान दिया जाना चाहिए। फेंसिंग से फसल नीलगाय से लेकर जंगली सुअरों तक से सुरक्षित हो जायेगी।
भाकिसं के वरिष्ठ पदाधिकारी लक्ष्मीनारायण पटेल कहते हैं कि लागत मूल्य इसलिए भी जरूरी है कि ग्रामीण इलाके में जो किसान हैं, उनमें से 50 फीसद के पास जमीन नहीं के बराबर है। बाकी के 50 फीसद में से 25 फीसद के पास एक एकड़ से कम जमीन है। ऐसे किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच ही नहीं पाते। इन्हें एमएसपी की जानकारी ही नहीं होती।
बाकी बचे 25 फीसदी किसानों में से लगभग 10 प्रतिशत किसान अपनी एमएसपी वाली फसलें बाजार में बेच पाते हैं। शांताकुमार कमेटी में तो यह संख्या और भी कम बताई गई है। भाकिसं के जैविक-खेती प्रमुख आनंद ठाकुर कहते हैं कि सरकार द्वारा जीएम (जीन-संवर्धित) फसलों को भी चोरी-छुपे अनुमति देने से कृषि के जानकारों से लेकर किसानों और पर्यावरण व सामाजिक कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। बीते 20 वर्षों से भाकिसं जीएम फसलों का कड़ा विरोध कर रहा है।
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