ma उन्नत आर्थिक विश्लेषण - I – Books & Notes PDF Download
व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण. (Micro Economic Analysis). एम. ए. अर्थशास्त्र (पूर्वार्द्ध). M.A. Economics (Previous).
BA / B.sc I,II & III Year (Economics) - अर्थशास्त्र प्रश्न पत्र
मॉड्यूल - 5 अर्थशास्त्र का परिचय - NIOS
अधिसत्रानुसार (सेमेस्टरवार) पाठ्यक्रम एम०ए० - अर्थशास्त्र .
भारतीय आर्थिक विचारों का इतिहास . सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण . M.A. (PREVIOUS) ECONOMICS. SESSION 2013-14.
Economics of Growth and Develpoment
आर्थिक विकास
प्रादर्श प्रश्न पत्र 2011 - अर्थशास्त्र (Economic) कक्षा बारहवीं
अध्याय – 1 - अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction of Economics)
ma उन्नत आर्थिक विश्लेषण - I – IGNOU Notes
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परियोजना के उद्देश्य - Project Objectives
उद्देश्य वे नींव हैं जिन पर परियोजना प्रारूप की इमारत का निर्माण किया जाता है। परियोजना के उद्देश्य संक्षिप्त रूप में यह परिभाषित करने से संबंधित है कि परियोजना क्या प्राप्त करने की अपेक्षा करती है और यह संपूर्ण रूप से परियोजना के निष्पादन के मापकों को प्रदान करने से संबंधित है।
परियोजना के उद्देश्य दो श्रेणियों में वर्गीकृत किए गए हैं धारण क्षम उद्देश्य और अर्जनशील आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य उद्देश्य । धारण क्षम उद्देश्य संसाधनों; जैसे मुद्रा, समय, ऊर्जा, यंत्र और कुशला के धारण और संरक्षण से संबंधित हैं। । दूसरी ओर अर्जनशील उद्देश्य संसाधनों के संग्रहण या वह स्थिति प्राप्त करने, जो संगठनों या उसके प्रबंधकों की नहीं है, से जुड़े हैं।
परियोजना उद्देश्य आर्थिक और सामाजिक प्रकृति के भी हो सकते हैं। आर्थिक उद्देश्य प्राथमिक रूप से केवल प्राथामिक वित्तीय लागत आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य और परियोजना के लाभों से संबंधित हैं। सामाजिक उद्देश्य व्यक्तिगत परियोजना के सामाजिक लागत लाभ पहलुओं के साथ समरूप होते हैं। इस प्रकार उद्देश्य, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले परियोजना के पूर्ण प्रभाव के दृष्टिकोण से परियोजना के विश्लेषण की प्रक्रिया है।
चूंकि परियोजना किसी निश्चित समयावधि के दौरान एक समुदाय के लिए वस्तु या सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि हेतु कुछ सुविधाओं को निर्मित, विस्तृत और विकसित करने के लिए निवेश करने का प्रस्ताव है। इसलिए जब परियोजना के उद्देश्यों का निर्णय लेना हो, तो कुछ बिंदुध्यान में रखने चाहिए; जैसे -
1. उद्देश्य संगठनात्मक योजनाओं, नीतियों और प्रक्रियाओं के अनुकूल होने चाहिएं।
2. उद्देश्य समय के साथ-साथ परिमेय, वास्तविक और प्रमाणनीय होने चाहिएं।
3. उद्देश्य वर्तमान या पूर्वानुमानित संसाधनों के साथ सुसंगत होने चाहिएं।
एक नई इकाई की स्थापना के चरण एक लघु आकार के उद्यम की स्थापना के चरण नए व्यवसाय की स्थापना के विभिन्न चरण एक उद्यमी जो व्यवसाय स्थापित करने में गहन रुचि रखता है, उसे एक प्रभावपूर्ण व्यावसायिक योजना तैयार करनी चाहिए तथा व्यवसाय स्थापित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए जिससे कि उसका विचार वास्तविकता का रूप ले सके। इस संदर्भ में उठाए जाने वाले विभिन्न कदमों का वर्णन यहाँ किया गया है। यह विभिन्न चरण उसे क्रमानुसार पूरे करने होते हैं :
1. स्वरोजगार का निर्णय - एक उद्यमी आर्थिक विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है । आधारभूत रूप से वह ऐसा व्यक्ति होता है जो एक नए व्यवसाय या उद्यम की स्थापना की जिम्मेवारी उठाता है । जिसमें पहल करने, अन्वेषण का गुण तथा ऊँचे पद की प्राप्ति जैसे गुण विद्यमानह होते हैं। वह परिवर्तनका उत्प्रेरक एजेंट होता है तथा वह समाज के लोगों की भलाई के लिए कार्य करता है । वह नए व्यवसाय स्थापित करने का कार्य करता है, समाजके लिए धन निर्माण करता है, रोजगार के अवसर पैदा करता है तथा विभिन्न क्षेत्रों के विकास का कार्य करता है। शिक्षा पूरी हो जाने के पश्चात शिक्षित व्यक्ति के पास दो आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य विकल्प होते हैं जिनमें से उसे एक को चुनना होता है। एक तो यह कि वह आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य दूसरों के कर्मचारी के रूप में कार्य करें तथा इसके लिए गहन आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है। यदि ऐसे व्यक्ति में सही कौशल, ज्ञान, योग्यता तथा आत्मविश्वास है तो उसके लिए अपना व्यवसाय स्थापित करना सर्वोत्तम विकल्प माना जाता है। अतः उसे इस संदर्भ में आगे चलना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमारे देश में बेरोजगारी की दर ऊँची होने के कारण भी गुणवान व्यक्ति उद्यमी अपना व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना अधिक अच्छा विकल्प मानते हैं।
इस प्रकार वे अपने उद्यम के स्वामी तो बनते ही हैं तथा वह अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त युवाओं की एक और श्रेणी अपना उद्यम स्थापित करने के लिए कार्य करती है। जो व्यक्ति अपने वर्तमान कार्य स्थल पर संतुष्ट नहीं हैं तथा उनमें उद्यमी बनने के संभावित गुण हैं तो वे भी अपना व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लेते हैं। उनकी वर्तमान कार्यस्थल से संतुष्टि के अनेक कारण होते हैं जैसे अपर्याप्त वेतन, कार्य से संतुष्टि न मिलना, आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य असुरक्षित भविष्य आदि। इसके लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न प्रोत्साहित करने वाले योजनाएँ भी आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य संभावित उद्यमियों को नई परियोजना या व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं। सरकार विभिन्न योजनाएँ, भी संभावित उद्यमियों को नई परियोजना या व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं। सरकार विभिन्न योजनाएँ, सहायताएँ, सब्सिडी, कम ब्याज दर आदि जैसे प्रलोभनों द्वारा युवाओं को नई व्यावसायिक इकाइयाँ स्थापित करने के लिए अभिप्रेरित करती है।
इसके अतिरिक्त कुछ आंतरिक एवं व्यक्तिगत कारण भी कुछ व्यक्तियों को उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। ये कारण उनके गुणों के रूप में भी माने जा सकते हैं जैसे- शैक्षणिक पृष्ठभूमि, पारिवारिक व्यावसायिक पृष्ठभूमि, स्वतंत्र रूप से स्थापित होने की इच्छा, नेतृत्व का गुण, पहलपन का गुण आदि। समाज में विद्यमान कुछ बाहरी कारण भी उद्यमिता को उद्यम में बदलने का कार्य करते हैं । औद्योगिक वातावरण की सकारात्मक उपलब्धता, बाजार में नए उत्पादोंकी माँग, सरकार की विशेष प्रोत्साहन योजनाएँ आदि उद्यमियों को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए निर्णय लेने में सहायता करते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि नया व्यवसाय या लघु इकाई स्थापित करने का निर्णय उन व्यक्तियों के लिए सही है जो प्रबंध तथा स्वामित्व दोनों ही क्षेत्रों में अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। इसलिए उद्यमी शब्द को सब तरह के व्यवसायों के साथ-साथ विशेष से छोटे व्यवसायों के साथ अधिक जोड़ा जाता है।
2. परियोजना / व्यवसाय की पहचान परियोजना की पहचान का अर्थ आर्थिक आँकड़ों को इकट्ठा करना, उसका संकलन करना तथा उनका विश्लेषण करना होता है। इस विश्लेषण से परियोजना से संबंधित मुख्य बातोंका पता लगाने का प्रयास किया है। संभावित परियोजना की जगह, उसमें निवेश, उसका भविष्य तथा उसमें विकास के अवसर जैसे तत्त्वों को इस स्तर पर जानने व समझने की कोशिश की जाती है। पीटर ड्रकर के अनुसार अवसर तीन प्रकार के हो सकते हैं: संयोजक, पूरक तथा पारवेधन ।
प्राप्त लाभ, बचत आदि। इसलिए एक उत्पाद का चयन अनेक तत्त्वों के विश्लेषण के पश्चात किया जाना होता है। कुछ मुख्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व जिनको ध्यान में रखा जाना चाहिए, निम्न हो सकते हैं:
समष्टि आर्थिक विश्लेषण (Macro Economic Analysis)
‘समष्टि अर्थशास्त्र’ का आर्थिक विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण स्थान है तथा प्रायः सभी विश्वविद्यालयों ने एम. ए. (अर्थशास्त्र) के पाठ्यक्रम में इसका समावेश किया है। आजकल सम्पूर्ण आर्थिक प्रणाली का अध्ययन माइक्रो एवं मेक्रो अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। निश्चित ही मेक्रो अर्थशास्त्र का क्षितिज अधिक व्यापक है। प्रस्तुत पुस्तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समष्टि आर्थिक विश्लेषण के पाठ्यक्रम को दृष्टि में रखकर तैयार की गई है।
विभिन्न विश्वविद्यालयों में समष्टि अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रम में एकरूपता नहीं है। अतः यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि पुस्तक प्रत्येक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को अक्षरशः पूरा करती है, किन्तु यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुस्तक में विषयों का चयन इस दृष्टि से किया गया है कि इसमें अधिकाधिक विषयों का समावेश हो गया है। यह ध्यान रखा गया है कि विषय-सामग्री स्पष्ट तथा सरल भाषा आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य में हो, ताकि छात्र इसे अच्छी तरह से समझ सकें। अद्यतन जानकारी देने के लिए नवीनतम् अधिकृत रिपोर्ट एवं प्रतिवेदनों का प्रयोग किया गया है। सरकार की आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण की नीतियों के फलस्वरूप जो परिवर्तन आर्थिक क्षेत्र में हुए हैं, सम्बन्धित अध्याय उसे प्रतिबिंबित करते हैं।
पाठ्यक्रमों में हिन्दी माध्यम के बढ़ते हुए महत्व को दृष्टि में रखते हुए इस पुस्तक में बहुत ही सही एवं व्यवहार-सम्मत हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। जहां आवश्यक हुआ, वहां अर्थशास्त्र के पारिभाषिक शब्दकोश का सहारा भी लिया गया है। सरल, सही एवं प्रवाहमयी हिन्दी भाषा इस पुस्तक की अनूठी विशेषता है।
समष्टि आर्थिक विश्लेषण Macro Economic Analysis Book विषय-सूची
आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य
As recorded history goes, Wholesale Price Indices for India have been published from the period of the Second World War. The first Economic Adviser to the Government of India in pre-Independence India, Sir Theodore E.G. Gregory (period 1937-1946) had started the ‘quick’ series, using the week ended August 19 1939 as base, and computed the Index from the week commencing January 10, 1942. During a spring cleaning exercise in July 2014, a few registers of pre-Independence period, containing information on wholesale price for select items and wholesale price index were discovered. The earliest register was for the year 1915 containing wholesale prices for Calcutta, and also Wholesale Price Indices. This finding now entirely changes the recorded history of wholesale price indices prepared in India. The Office of the Economic Adviser celebrates this startling discovery and the above depicts a collage of images of pages from the old Registers, pertaining to years 1915, 1937, 1939 and 1947.
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