शासकीय कुसुम महाविद्यालय में सेमिनार: जैविक खेती की चुनौती व संभावना पर कार्यशाला का हुआ आयोजन
सिवनी मालवा के शासकीय कुसुम महाविद्यालय में "जैविक खेती की चुनौती व संभावना" विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया। जिसमें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित जैविक कृषि विशेषज्ञ बाबूलाल दाहिया सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती व कन्या पूजन कर किया गया।
वहीं कार्यक्रम के शुभारंभ के पूर्व छात्राओं के ओर से स्वागत गीत गाया गया। जिसके बाद बाबूलाल दहिया ने जैविक खेती पर अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम की मेजबानी विधायक प्रेमशंकर वर्मा ने की।
उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे अपने उत्पादों की मार्केटिंग की कार्य योजना बनाएं। साथ ही किसान समर्पण के साथ जैविक खेती को नवीनतम तकनीक, बाजार की मांग को ध्यान में रखकर करें और मौसम के बदलाव पर जरूर नजर रहे।
दाहिया ने कहा कि जैविक खेती की पहली उपलब्धि तो यही है कि इसके किसान को समाज में भले आदमी के रूप मे देखा जाता है। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के मानव स्वास्थ्य पर बढ़ते गंभीर दुष्प्रभावों के दृष्टिगत कृषि में आने वाला समय जैविक उत्पादों व इनके उत्पादकों का ही है। इस मौके पर जैविक किसानों ने बताया कि उनके उत्पादों के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं, जिसके कारण कई किसान को ऐसी खेती से तौबा करने की स्थिति में हैं।
पर्यावरण संरक्षक गतिविधि प्रान्त संयोजक शिवशंकर सिंह ने बताया कि ऑर्गेनिक फार्मिंग का तात्पर्य एक ऐसी कृषि प्रणाली से है, जिसमें भूमि पर फसलों को इस तरह से उगाया जाए ताकि जैविक सामग्री, जैविक कचरे व लाभकारी जीवाणुओं के उपयोग व्यापार प्रणालियों की विविधता द्वारा मिट्टी को स्वस्थ रखा जा सके। जैविक खेती ऐसी उत्पादन प्रणाली है जो जमीन, पारिस्थितिकीय प्रणाली और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखती है।
यह पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं, जैव विविधता और स्थानीय स्थितियों पर आधारित ऐसे चक्रों पर निर्भर है जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हैं और इसमें प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कृषि पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता। यह कृषि उत्पादन प्रणाली मुख्य रूप से जैविक पदार्थों या खेत आधारित संसाधनों पर निर्भर है।
इसमें खेतों से बाहर के कृत्रिम पदार्थों के उपयोग को हतोत्साहित किया जाता है, ताकि मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित किये बगैर लम्बी अवधि तक प्राकृतिक संतुलन को कायम रखा जा सके। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रही।
मोदी ने व्यापार प्रणालियों की विविधता व्यापार प्रणालियों की विविधता किया उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों को जोड़ने का प्रयास : अमित शाह
बीएचयू के एम्फी थियेटर ग्राउंड में काशी तमिल संगमम के समापन समारोह को संबोधित करते हुये श्री शाह ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश की सांस्कृतिक एकता, विरासत की विविधता और अलग अलग संस्कृतियों के अंदर भारतीय आत्मा को कुछ हद तक मलिन किया था। उसके पुनर्जागरण की जरूरत थी, आजादी के तुरंत बाद ये प्रयास होना चाहिए था, मगर कई साल तक ये नहीं हुआ। काशी तमिल संगमम भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत है। इस कार्य को आजादी के बाद ही शुरू कर देना चाहिए था, मगर नहीं किया गया। आदि शंकराचार्य के बाद भारत में उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों को जोड़ने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ये पहला सफल प्रयास है।
उन्होंने कहा "मेरा अनुरोध है कि आप जब यहां से लौटें तो अपने साथ काशी से एक लोटे में गंगाजल लेकर जाएं और रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करें और दोबारा जब कभी काशी आएं तो रामेश्वरम से सागर की रेत लेकर आएं और मां गंगा में अर्पित करें।" 17 नवंबर से आयोजित काशी तमिल संगमम का शुक्रवार को समापन हो गया।
केन्द्रीय मंत्री ने कहा "आज एक प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी की काशी तमिल संगमम की कल्पना की पूर्णाहुति होने जा रही है। मगर मैं कहना चाहता हूं कि ये पूर्णाहुति नहीं बल्कि शुरुआत है भारतीय संस्कृति के दो उत्तुंग शिखर तमिलनाडु और काशी की संस्कृति, भाषा, दर्शन, कला और ज्ञान के मिलन की।"
उन्होंने कहा कि भारत अनेक संस्कृतियों, संस्कार, भाषा, मूल्य और कलाओं का देश है। मगर सबके बीच में बारीकी से देखें तो उसकी आत्मा एक है और वो आत्मा है भारत की। इसीलिए दुनिया भर के देशों के अस्तित्व और रचना का अभ्यास करने वाले विद्वान कहते हैं कि विश्व के सारे देश जियो पॉलिटिकल कारण से बने देश हैं, मगर भारत जियो कल्चरल देश है और संस्कृति के आधार पर बना है। क्योंकि हम भू सांस्कृतिक देश हैं, इसलिए हमारी एकात्मकता का आधार हमारी संस्कृतियां हैं। बहुत लंबे समय से हमारे देश की संस्कृतियों को जोड़ने का प्रयास नहीं हुआ था। पीएम मोदी ने काशी तमिल संगमम के माध्यम से बहुत सदियों के बाद ये प्रयास किया है, मुझे भरोसा है कि ये आने वाले दिनों में ना केवल तमिलनाडु और काशी, बल्कि पूरे देश को एक सूत्र में जोड़ने का अभिनव प्रयास साबित होगा।
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अमित शाह के सामने BSF अफसरों पर भड़कीं सीएम ममता, फोर्स की पावर बढ़ाने पर जताई आपत्ति
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कोलकाता में शनिवार को ईस्टर्न जोनल काउंसिल की व्यापार प्रणालियों की विविधता बैठक की. इसमें पश्चिम बंगाल के अलावा बिहार, झारखंड, ओडिशा और सिक्किम के सीएम या उनके प्रतिनिधि शामिल हुए. बैठक के दौरान सीएम ममता ने बीएसएफ के अधिकार बढ़ाने पर आपत्ति जताई. वह सुरक्षाबल के अधिकारियों से भी भिड़ गईं.
सूर्याग्नि रॉय /सत्यजीत कुमार
- कोलकाता/रांची,
- 17 दिसंबर 2022,
- (अपडेटेड 17 दिसंबर 2022, 5:44 PM IST)
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को कोलकाता में ईस्टर्न जोनल काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता की. इस बैठक में सीएम ममता बनर्जी भी मौजूद रहीं. इस दौरान उन्होंने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उठाया. सीएम ममता ने अमित शाह की मौजूदगी में नए कानून पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि बीएसएफ को सीमा के 50 किमी के दायरे में कार्रवाई का अधिकार देने से आम लोगों को परेशानी हो रही है. लोगों और अफसरों के बीच तालमेल बनने में दिक्कत आ रही है. वहीं बीएसएफ ने राज्य सरकार पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है. इसके बाद सीएम ममता और बैठक में मौजूद बीएसएफ अफसरों के बीच बहस हो गई.
दरअसल व्यापार प्रणालियों की विविधता केंद्र ने नए कानून के तहत बीएसएफ को कार्रवाई करने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट की जरूरत भी नहीं होगी, जबकि पुराने नियम के तहत बीएसएफ 15 व्यापार प्रणालियों की विविधता किमी अंदर तक ही कार्रवाई कर सकती थी. बैठक में पश्चिम बंगाल के अलावा बिहार, झारखंड, ओडिशा और सिक्किम के मुख्यमंत्रियों या उनके प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
ईस्टर्न जोनल काउंसिल की बैठक में ममता बनर्जी ने डीवीसी (दामोदर वैली कॉर्पोरेशन) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए. सीएम ने शिकायत की कि डीवीसी ने पश्चिम बंगाल सरकार को बिना बताए पानी छोड़ दिया है फिर बाद में उसने कह दिया कि ऐसा नहीं किया है. इसके बाद अमित शाह ने समस्या का समाधान करने को कहा. केंद्रीय गृह मंत्री ने तीन दलों, डीवीसी, केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों के साथ एक समिति बनाने के लिए कहा है.
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जी-20 कार्यक्रमों में अपनी संस्कृति का प्रदर्शन करें
केंद्रीय गृह मंत्री ने बैठक में राज्यों के सीएम से अगले साल उनके राज्यों में आयोजित होने वाले जी-20 कार्यक्रमों के दौरान अपने राज्यों की सांस्कृतिक विविधता और पर्यटन स्थलों को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने का आग्रह किया.
पूर्वी क्षेत्र में खत्म हो गया वामपंथी उग्रवाद
अमित शाह ने कहा कि देश के पूर्वी क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद लगभग खत्म हो गया है. वामपंथी उग्रवाद पर इस निर्णायक प्रभुत्व को बनाए रखने के प्रयास किए जाने चाहिए. इन राज्यों में यह फिर से उभरना नहीं चाहिए. इन राज्यों को देश के अन्य हिस्सों के समान विकसित होना चाहिए.
AI के जरिए ड्रग्स के खिलाफ चलाएं अभियान
केंद्रीय गृह मंत्री ने मुख्यमंत्रियों से अपील की कि जिला स्तर पर एनसीओआरडी प्रणाली विकसित करें और नशीले पदार्थों के खिलाफ लड़ाई के लिए इसकी नियमित बैठकें करें. उन्होंने कहा कि आज देश में नशे के खिलाफ लड़ाई निर्णायक चरण में है. इसे और तेज करने की जरूरत है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए ड्रग्स के खिलाफ अभियान चलाएं.
जीएसटी फंड को लेकर नाराजगी जताई
सीएम ममता ने जीएसटी के फंड को लेकर अमित शाह से शिकायत की. उन्होंने केंद्र पर आरोप लगाया कि केंद्र समय पर पैसा नहीं देता है, जिससे राज्य सरकार को काम करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
आदिवासी रेजिमेंट का गठन हो: हेमंत सोरेन
बैठक में मौजूद झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासी एवं वनों में पीढ़ियों से निवास करने वाले लोगों के अधिकारों लिए वनाधिकार अधिनियम 2006 के अनुरूप संशोधित किया जाए. इसके अलावा उन्होंने मांग की कि आदिवासी रेजिमेंट के गठन के लिए रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिए जाएं.
हेमंत सोरेन ने कहा कि वन (सरंक्षण) नियम, 2022 में जिस तरह से वन भूमि अपयोजन में ग्राम सभा के अधिकार को खत्म किया गया है, उससे पूरे देश के करीब 20 करोड़ आदिवासी एवं वनों में पीढ़ियों से निवास करने वाले लोगों के अधिकारों का अतिक्रमण हुआ है. उनके अधिकारों की रक्षा के लिए इसे वनाधिकार अधिनियम 2006 के अनुरूप संशोधित किया जाए.
सीएम ने कहा कि पांच हेक्टेयर तक की वन भूमि के अपयोजन के लिए राज्य सरकार के द्वारा स्वीकृत किए जाने के पूर्व के प्रावधान को बहाल किया जाए.
हेमंत सोरेन ने ये रखीं बातें-
- झारखंड की कई कोयला कंपनियों जैसे CCL, BCCL, ECL पर कुल एक लाख छत्तीस हजार करोड़ बकाया राशि का भुगतान जल्द कराया जाए.
- बंद खदानों का क्लोजर कराया जाए ताकि पर्यावरण की सुरक्षा हो सके, अवैध खनन पर भी रोक लग सके.
- रेलवे को झारखंड से सबसे ज्यादा आय मिलती है लेकिन झारखंड में रेलवे का एक भी जोनल मुख्यालय नहीं है, इसलिए यहां रेलवे का जोनल मुख्यालय स्थापित करने का निर्देश दिया जाए.
- केंद्र की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में दस साल से केंद्र द्वारा कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है. महंगाई को देखते हुए इस राशि में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की जरूरत है.
- झारखंड के करीब आठ लाख पैंतीस हजार परिवार पीएम आवास योजना के लाभ से वंचित हैं. इन सभी को आवास स्वीकृत करने का निर्देश ग्रामीण विकास मंत्रालय को दिए जाएं.
- झारखंड जैसे उग्रवाद प्रभावित व गरीब राज्य में CAPF(Central Armed Police Force) की प्रतिनियुक्ति के लिए केंद्र द्वारा राज्य से राशि के भुगतान की मांग नहीं की जानी चाहिए.
- GST कम्पनसेशन की अवधि को अगले 5 साल तक विस्तारित किया जाए, नहीं तो झारखंड को हर साल करीब 5 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने के आशंका है.
भारत 2030 तक 30 प्रतिशत भूमि और जल की रक्षा के लक्ष्य को कर लेगा हासिल
आटोवा । कनाडा व्यापार प्रणालियों की विविधता में सीओपी15 जैव विविधता सम्मेलन में भारत की नुमाइंदगी कर रहे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत का करीब 27 फीसदी क्षेत्र संरक्षित है और वह 2030 तक 30 प्रतिशत भूमि और जल की रक्षा के लक्ष्य को आसानी से पा लेगा है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) के सचिव जे. जस्टिन मोहन ने कहा कि भारत 113 व्यापार प्रणालियों की विविधता देशों के 'हाई एम्बिशन कोलिशन (एचएसी) का सदस्य है जिसका मकसद 30 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को 2030 तक संरक्षित करना है। संरक्षित वन राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव अभयारण्य मैनग्रोव रामसर स्थल पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र और सामुदायिक रूप से संरक्षित क्षेत्र सहित भारत ने पहले ही करीब 27 फीसदी क्षेत्र संरक्षित कर लिया है। भारत 2030 में आसानी से '30 गुणा 30' का लक्ष्य हासिल कर सकता है। ओईसीएमएस वे इलाके होते हैं जो निजी तथा सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा संरक्षित होते हैं।
इस बारे में मोहन ने कहा भारत में ओईसीएमएस के लिए असीम संभावना है इससे अपने 30 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को संरक्षित करने के हमारे लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। भारत के राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) के पूर्व अध्यक्ष विनोद माथुर ने कहा कि भारत ने ओईसीएमएस को परिभाषित करने के लिए 14 श्रेणी की वर्गीकरण प्रणाली बनाई है। उन्होंने कहा कि हालांकि इन ओईसीएमएस को संरक्षित करने के लिए स्थानीय समुदाय को जागरूक करने की आवश्यकता है।
मोहन ने कहा भारत के पास सभी स्थानीय निकाय में स्थापित 277123 जैव विविधता प्रबंधन समितियां हैं। हमारी वन्य पारिस्थितिकी के बाहर और इलाकों को जैवविविधता धरोहर स्थलों के तहत लाने की असीम संभावना है। उन्होंने कहा ये इलाके औषधीय पौधों और पक्षी से समृद्ध हो सकते है।
गुजरात में ‘रिकार्ड’ पर ‘रिकार्ड’
गुजरात चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मिली भीषण विजय को केवल ‘जीत’ नहीं कहा जा सकता बल्कि इसके गूढ़ व गंभीर निहातार्थ भी हैं। राज्य में भाजपा को 53 प्रतिशत से अधिक मत मिले हैं जिनका सर्वाधिक वोट पाने वाले प्रत्याशी के विजय नियम में विशिष्ट महत्व हो जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि कुल 182 सीटों पर भाजपा के प्रत्येक प्रत्याशी को 53 प्रतिशत मत मिलते तो किसी भी अन्य पार्टी का एक भी प्रत्याशी विजयी नहीं हो पाता। परन्तु 53 प्रतिशत कुल 182 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को पड़े वोटों का औसत है जिसका मतलब यह हुआ कि कुछ सीटों पर भाजपा को 70 से लेकर 80 या 85 प्रतिशत तक वोट पड़े और कुछ स्थानों पर कम वोट पड़े जिसकी वजह से वहां विपक्षी दलों के प्रत्याशी विजयी हुए। मसलन जिस घटलोडिया सीट पर मुख्यमन्त्री श्री भूपेन्द्र पटेल विजयी हुए वहां कमल के निशान पर 83 प्रतिशत मत पड़े। उनके विरुद्ध कांग्रेस पार्टी की अमी याज्ञिक को मात्र 8.26 प्रतिशत मत और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को केवल 6.28 प्रतिशत मत ही मिल पाये। इस प्रकार दोनों की जमानत जब्त हो गई। अमी याज्ञिक तो राज्यसभा की सदस्य भी हैं। यदि कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी के मतों को जोड़ भी दिया जाये तो कुल वोटों का प्रतिशत केवल 14.44 ही व्यापार प्रणालियों की विविधता रहा जबकि जमानत बचाने के लिए कुल पड़े मतों का 16.67 प्रतिशत प्राप्त करना आवश्यक होता है। अतः इस सीट पर दोनों ही विपक्षी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। चुनाव नियमों के अनुसार जमानत राशि बचाने के लिए प्रत्याशी को कम से कम इतना वजनदार होना चाहिए कि वह मतों का सम्मानजनक हिस्सा प्राप्त कर सके। मगर आश्चर्यजनक रूप से गुजरात के चुनावों में इस बार 74 प्रतिशत प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हो गईं।
राजनैतिक दलों में सर्वाधिक 128 आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में असफल रहे जबकि 42 कांग्रेसी प्रत्याशियों का भी यही अंजाम रहा। इसका निष्कर्ष मोटे अर्थों में चुनावी भाषा में यह निकाला जा सकता है कि इस बार भाजपा की आंधी नहीं बल्कि तूफान चल रहा था। यह रिकार्ड पर रिकार्ड बनाकर जीती। राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों पर सभी दलों के निर्दलीयों समेत कुल 1621 प्रत्याशी खड़े हुए थे, इनमें से 1200 की जमानतें जब्त हो गईं। 27 सीटों पर भाजपा हारी भी मगर इसकी हार का अन्तर भी इन सीटों पर बहुत कम रहा। कांग्रेस को 17 व आम आदमी पार्टी को पांच सीटें मिली। इस प्रकार विधानसभा में अधिकृत विपक्षी दल होने का अवसर भी किसी पार्टी को नहीं मिल सकेगा। व्यापार प्रणालियों की विविधता कांग्रेस केवल एक स्थान से यह अवसर चूक गई क्योंकि विपक्षी दल के रूप में मान्यता उसी पार्टी को मिलती है जिसके कुल सदस्य शक्ति से कम से कम दस प्रतिशत विधायक हों।
गुजरात विधानसभा की सदस्य संख्या को देखते हुए कांग्रेस के यदि 18 विधायक जीत कर आते तो उसके विधानमंडल दल के नेता को यह अवसर मिल व्यापार प्रणालियों की विविधता सकता था। अब इस पार्टी के नेता को विपक्षी दल के नेता की हैसियत बख्शना सत्तारूढ़ दल भाजपा की सदस्यता पर निर्भर करता है। भारत की लोकसभा में भी कांग्रेस की हालत एेसी ही है जहां 545 सदस्यीय इस सदन में कांग्रेस के कुल 53 सांसद हैं। परन्तु लोकतन्त्र में विपक्ष विहीन विधानसभा या संसद होना लोकतन्त्र के लिए की खतरे घंटी होती है। संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका को जो लोग केवल अड़चन डालने वाली शक्ति या अवरोध पैदा करने वाली ताकतों के रूप में देखते हैं वे मूलतः गलती पर होते हैं क्योंकि विपक्षी विधायकों या सांसदों को भी आम जनता ही अपने एक वोट के अधिकार से चुनकर भेजती है। उनके अल्पमत में होने का अर्थ उनके जन प्रतिनिधि होने के अधिकार को नहीं समाप्त कर सकता। इस प्रणाली में मुख्यमन्त्री व किसी विपक्षी विधायक की जनता का प्रतिनिधि होने के मामले एक समान ही होते हैं। मुख्यमन्त्री का चुनाव उसके दल के बहुमत में आने पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही करते हैं। विधानसभा में पहुंचने पर प्रत्येक विधायक के अधिकार बराबर होते हैं। परन्तु असली सवाल यह है कि जब लोकतन्त्र में इकतरफा हवा बहने लगती है तो चुने हुए सदनों में भी इकतरफा फैसले लेने को बल मिलने लगता है।
लोकतन्त्र के लिए यही सबसे घातक होता है क्योंकि गुजरात में ही जो 47 प्रतिशत मत भाजपा के विरोध में पड़े हैं उनका प्रतिनिधित्व सदन के भीतर किस रूप में हो पायेगा? ऐसे में सत्ता पर आरूढ़ दल और उसकी सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वह लोकतन्त्र की उस आत्मा को जीवित रखे जो इस प्रणाली की प्राणवायु मानी जाती हैं अर्थात मत भिन्नता या मत विविधता। इसमें असहमति की भी एक मुख्य भूमिका होती है। इन हालात में स्वस्थ लोकतन्त्र में सत्तारूढ़ दल स्वयं ही अपने भीतर ऐसे वैचारिक समूह पैदा करता है जो किसी भी फैसले के हर पक्ष की विवेचना बेबाकी से कर सकें। क्योंकि कोई भी लोकतन्त्र विपक्ष मुक्त नहीं हो सकता। बहुदलीय राजनैतिक प्रणाली में राजनैतिक दलों का उत्थान-पतन चलता रहता है, मगर विचारों और सिद्धान्तों का अनवरत द्वन्द कभी समाप्त नहीं होता। व्यापार प्रणालियों की विविधता इसी वजह से समाजवादी चिन्तक व नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सिद्धांतों और विचारों की समानता का रिश्ता खून के रिश्तों से भी गाढ़ा होता है।
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